मोहम्मद वसीम
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं ।
(हसरत मोहानी)
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 मुसलमानों की याद न लाए तो क्या लाए ? समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुसलमानों के सहारे दोबारा सत्ता पाने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेस भी मुस्लिम वोटरों के ज़रिये अपनी साख बचाने में लगी हुई है और साथ ही ऑल इण्डिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी फिर से एक बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में खाता खोलने के लिए बेताब है। वहीं दूसरी ओर भाजपा गठबंधन की सहयोगी पार्टी (अपना दल-एस) भी मुस्लिम बहुल सीट पर अपना भाग्य आजमा रही है।
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संख्या 3 करोड़ 84 लाख 83 हजार 967 यानी लगभग 19.26 फीसदी है। कहा जा सकता है कि प्रदेश का हर पांचवां शख्स मुसलमान है। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 15 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें मुस्लिम वोटरों की संख्या 51 से 65 फ़ीसदी, 20 विधानसभा क्षेत्रों पर 35 से 50 फ़ीसदी, 45 विधानसभा क्षेत्रों पर 25 से 34 फ़ीसदी, 83 विधानसभा क्षेत्रों पर 15 से 24 फ़ीसदी हैं। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में 163 (15+20+45+83) विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता अहम रोल अदा करते हैं। जातिगत समीकरण के साथ बसपा और सपा अपने-अपने मूल वोट बैंक दलित- यादव एवं मुस्लिम मतदातओं के सहारे समय-समय पर अपनी सरकारों का गठन करती आई हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 75 ज़िलों में से 30 ज़िलों में लगभग 17 से 50 फ़ीसदी तक मुस्लिम आबादी हैं जिसमे रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, बलरामपुर, सम्भल, बरेली, मेरठ, शामली, हापुड़, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बाग़पत, ग़ाज़ियाबाद, पीलीभीत, संत कबीर नगर, बाराबंकी, बुलंदशहर, बदायूँ, लखनऊ, सुल्तानपुर, खीरी, सीतापुर, अलीगढ़, गोंडा, मऊ और शाहजहांपुर शामिल हैं।
2017 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल 163 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 137 सीटें, समाजवादी पार्टी ने 21, कांग्रेस ने 2, बसपा, आरएलडी और अपना दल-एस ने सिर्फ एक-एक सीट पर जीत हासिल की थीं। अपना दल और भाजपा गठबंधन ने 138 सीट पर अपनी जीत का परचम लहराया, और सपा-कांग्रेस का गठबंधन इन मुस्लिम बहुल सीटों में केवल 23 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाया था, उत्तर प्रदेश में बीजेपी गठबंधन को 325 सीटें मिली थीं। पिछले चुनाव में भाजपा की इस प्रचंड जीत में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों का बहुत बड़ा योगदान रहा था, या यूँ कहना भी गलत नहीं होगा कि इन 163 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदातओं के वोट का सपा, बसपा, कांग्रेस, ए.आई.एम.आई.एम. व अन्य पार्टियों एवं निर्दलीय उमीदवारों में बंटवारे का सीधा-सीधा फायदा बीजेपी को पंहुचा था।
2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत हासिल कर पूर्ण बहमत वाली सरकार बनायी। सपा की इस पूर्ण बहुमत वाली सरकार में उन 163 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों का भरपूर्ण योगदान रहा। 163 विधानसभा सीटों में से सपा को 90 सीटें, बसपा को 30 सीटें, भाजपा को 22 सीटें, कांग्रेस को 11 सीटें, रालोद को 5 सीटें, पीस पार्टी को 3 सीटें, कौमी एकता दल और इत्तेहाद मिल्लत काउंसिल को 1-1 सीट मिली थीं।
2007 के पंद्रहवे विधानसभा चुनाव में बसपा ने 206 सीटों पर जीत हासिल कर पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनायी थी। बसपा को भी इन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की 163 विधानसभा सीटों का भरपूर्ण फायदा मिला था। 163 विधानसभा सीटों में से बसपा को 82 सीटें, सपा को 35 सीटें, भाजपा 21 सीटें, कांग्रेस 10 सीटें, रालोद को 6 सीटें, निर्दलीय प्रत्याशियों को 7 सीटें, आरपीडी और यूपीयूडीएफ़ 1-1 सीट मिली थीं।
2017 विधानसभा चुनाव में सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि भाजपा ने 82 सीटों में से 62 सीटें ऐसी जीती जहाँ मुस्लिम मतदाताओ की संख्या एक-तिहाई या उससे अधिक थी। मुजफ्फरनगर, बरेली, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, पीलीभीत, बुलंदशहर, अलीगढ़ ऐसे ज़िले थे जहाँ मुस्लिम जनसंख्या 18 से 40 फ़ीसदी तक है, लेकिन भाजपा ने इन सभी ज़िलों सीटों पर बाकी पार्टियों का सूपड़ा साफ़ कर दिया था। इसकी सबसे अहम वजह थी मुस्लिम मतदाताओं के वोट का बंटवारा और सपा बसपा जैसी पार्टियों का मूल वोट बैंक भाजपा के खाते में चलें जाना, जिसका सीधा-सीधा फ़ायदा भाजपा को पंहुचा।
2017 के विधानसभा चुनाव में 25 मुस्लिम उम्मीदवार जीत कर विधानसभा पहुचें। वहीं दूसरी तरफ़ 84 मुस्लिम उमीदवार उपविजेता रहे। इन्ही 84 सीटों में से 79 सीटों पर भाजपा विजय रही; 1 सीट पर अपना दल-एस, 2 सीटों पर सपा, 1-1 सीट पर बसपा और कांग्रेस विजय रहीं। 84 सीट में से 36 सीट पर बसपा, 35 सीट पर सपा और 13 सीट पर कांग्रेस उपविजेता रही। इस लिहाज़ सपा-कांग्रेस 48 सीट पर मुस्लिम उम्मीदवारो के साथ उपविजेता रहीं। 2012 विधानसभा चुनाव में पहली बार 69 मुस्लिम विधायक उत्तर प्रदेश की विधानसभा पहुंचे। इससे पहले 2007 में 56 मुस्लिम विधायक और 2002 में 47 मुस्लिम विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे थे।
विशेषज्ञों के अनुसार मुस्लिम फैक्टर 2022 के विधान सभा चुनाव में इसलिए बहुत अहम माना जा रहा है क्यूंकि सपा और बसपा अपने मूल जनाधार की वापिसी का बहुत चढ़-बढ़ कर बखान कर रहीं हैं। सपा बसपा मुस्लिम मतदाताओं की उम्मीद के सहारे बैठी हैं। शायद बसपा फिर एक बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 100 से ज़्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने वाली है, वहीं सपा गठबंधन भी 60-80 के बीच मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट बाटती नज़र आ रही है। इस बार एआईएमआईएम भी 100 सीटों पर अपनी उम्मीदवार खड़े कर रही है।
उत्तर प्रदेश में 2002, 2007, 2012 और 2017 विधानसभा चुनावों में सबसे ज़्यादा मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को मिले हैं जो क्रमशः 53%, 49%, 47%, 45% हैं। बसपा को क्रमश: 11%, 17%, 20%, 19%; कांग्रेस को क्रमश: 10%, 14%, 18%, 19%; भाजपा को क्रमश: 03%, 02%, 07%, 05%, व अन्य को क्रमश: 20%, 14%, 16%, 12%, मुस्लिम वोट मिले हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार 2022 विधानसभा चुनाव में 55% से 65% फ़ीसदी मुस्लिम वोट सपा की झोली में आना तय माना जा रहा है। कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी इसी वोट बैंक के ज़रिये सत्ता में वापस आने का दावा कर रही है। जबकि बसपा भी अपनी सोशल इंजीनियरिंग के ज़रिए सरकार बनाने का दावा कर रही है। पिछले कुछ सालों से एआईएमआईएम उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति को लेकर अपना एक अलग ठहराव रखती हैं। एआईएमआईएम की रणनीति भी उन्हीं समीकरणों पर आधारित है जिन जातिगत समीकरण व संप्रदाय के आधार पर बनीं ये अन्य पार्टियां अपने मूल जनाधार को समेटे हुए सालों से अपने जाति अथवा संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करती आ रहीं हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की शुरुआत किसी भी मुद्दे से शुरू हुई हो, लेकिन अंत में चुनाव का रुख सिर्फ़ इन्हीं मुद्दों की ओर जाता दिख रहा है, जैसे हिन्दू-मुस्लिम, अस्सी-बीस, जिन्ना, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, तालिबान, आज़म खान, पलायन, काशी, मथुरा, अयोध्या, मंदिर-मस्जिद, शमशान कब्रिस्तान इत्यादि। 2022 के विधानसभा चुनाव किस पार्टी के सर सेहरा बांधता हैं यह तो 10 मार्च को साफ़ साफ़ ज़ाहिर हो जायेगा लेकिन इस में कोई दो राय नहीं इन चुनावों में मुस्लिम वोट अग्रणी भूमिका निभाएगा। यदि मुस्लिम वोट विभाजित होता है तो सम्भव है कि उत्तरप्रदेश को पुन: अनैच्छिक परिणामों का सामना करना पड़े।
मोहम्मद वसीम फ्रीलैन्सर हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं। ईमेल – suff.new@gamil.com
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